हमें, हमारे कुछ प्रश्न के उत्तर कभी नहीं मिलने चाहिए।
हमें, हमारे कुछ प्रश्न के उत्तर कभी नहीं मिलने चाहिए।
जीवन की इस भागादौड़ी में कुछ प्रश्न के उत्तर ना हीं मिले तो अच्छा है। द्वंद बना ही रहे तो अच्छा है।
क्यूं की उत्तर हमें धारा से अलग किनारे पे ला के खड़ा कर देते हैं। और किनारे पे आ जाने से सफर की समाप्ति हो जाती हैं। और सफर समाप्त होते ही, मनुष्य जीवन का अंत। यह द्वन्द ही तो है, जो जीवन के पहिये को घुमाने के लिए ज़रूरी है।
जीवन एक बहती हुई नदी के समान होना चाहिए, क्यूं की जैसे ही नदी रुक गई, वो पोखरे में बदल जाती हैं। जिस में काई का जम जाना स्वाभाविक हैं।
और अगर प्रश्नों के उत्तर ना मिले, तो जीवन में सतत ही एक प्रयास बना रहेगा, वो प्रयास आपको धारा की तरह बहते रहने पे मजबूर कर देगा । और निर्मलता धारा की तरह बहते रहने में हैं । थम जाने में नहीं। इसलिए मनुष्य को उत्तर के साथ नही, प्रश्नों के साथ रहने की आदत डाल लेनी चाहिए क्यूं की यह प्रश्न ही उसको निर्मल बनाए रखते हैं ।
संसार में जिनके पास भी उत्तर है, वो कहीं ना कहीं, उस उत्तर को सच साबित करने में लगे रहना चाहते हैं, जिस वजह से अपने ऊपर एक बोझ का अनुभव हमेशा ही बना रहता है, जिस वजह से द्वन्द, अक्सर क्रोध में, और क्रोध, अहम् में बदल जाता है।
जिनके पास सिर्फ प्रश्न ही हैं, वो बेचारे तो हर तरफ पागलों की तरह उत्तर की खोज में लगे हैं, और राह चलते सभी के साथ मुसाफिरों की तरह प्रेम बांट रहे हैं। क्यूं की वो अपनी दुनिया में इतने मग्न हैं, की उन्हें एक उत्तर के साथ एक धारणा बनाने की फुरसत ही नही है। चुकी धारणा नही है, तो अपनी धारणा को साबित करने का मद भी नही है, और धारणा साबित ना हो पाने का क्रोध भी नही है।
जो प्रश्न के साथ हैं, उन्हें उत्तर जानने का घमंड भी नही है, जो उन्हे हमेशा विनम्र बनाए रखता है। और जो विनम्र है वही परोपकार और दान का मतलब समझ सकता है।
इसलिए मैं कहता हूं, की उत्तर नहीं प्रश्न के पीछे भागना शुरू करो, क्यूं की नदी अगर किनारे पे रुक जाए तो समुद्र से मिल नही सकती, उसको तो बहना होगा, बहते रहना होगा, अगर उसकी चाह समुद्र से मिलने की हैं तो ।