कुछ तो फालतू लिखना है
रात भर जागने, कुछ आँसू बहाने, और बहुत कुछ सोचने के बाद, भी यह समझ ना आना की जिंदगी का अहसास है कहाँ ।
ये जिंदगी में ऐसा क्यों होता है, हर बार, बार-बार, कि जो आपका है नही, या जो आपको मिलना नही है, क्यों वो आपके जिंदगी में आता है, ऐसा ईश्वर ने क्या सोचा है, और क्यों सोचा है, यह समझ में नहीं आता।
एक तरफ मन खुद को यह कहकर समझता है, कि जो होता है अच्छे के लिए ही होता है, और दूसरी तरफ यही मन उस घटना में कुछ भी अच्छा नहीं पाता है।
ये दोनो ही स्थिति समय के एक ही पल में जब घटती है, तो सच में यही लगता है की कुछ बचा भी है क्या मेरे लिए यहाँ, या सिर्फ मेरे साथ ही ऐसा क्यों ?
घर में लगी हुई ईश्वर की फोटो देखता हूँ, इस बात का जवाब जानने के लिए, तो फिर मेरे अंदर के दो मन आपस में लड़ने लगते हैं।
एक मन कहता हैं, की क्या तुम्हारी जिंदगी में, कुछ भी आज तक गलत हुआ है, या जो कुछ भी तुमने अपने लिए सोचा था कभी, क्या वो कभी हुआ है?
नही वो तो बिलकुल भी नही हुआ, क्योंकी हर वो बात हुई है, जो मैंने सोची तो नहीं थी। पर उससे अच्छा हुआ है, जो मैंने सोचा था, वो कुछ भी नही मिला है, जो मुझे चाहिए था, पर वो सब मिला है, जो मेरी जिंदगी में होना चाहिए था।
वहीं जब दूसरा मन हावी होता है, तो यह सब अच्छी और सकारात्मक बात याद नहीं रहती, तब मन में फिर से वही बात दौड़ने लगती है, मेरे साथ ही क्यों?
कुदरत का मेरे लिए ऐसा इंतज़ाम क्यों हैं जिसमें पहले मुझे ही रोना पड़ता है, क्यों हर बार पहले मुझे ही खोना पड़ता है, क्यों मुझे हर बार वो झेलना पड़ता है, जिसका मैं जिम्मेदार नहीं हूँ, क्यों मेरी ही रात की नींद खराब होती है, क्यों मेरी ही कहानी का अंत अच्छा नहीं हो पा रहा, क्यों मैं ही किसी को इतना अपना मान लेता हूँ, की जब वो अलग हो रहा है तो मैं टूटता हूँ । हर बार कुदरत मेरा ही इम्तिहान क्यों लेती है।
एक जवाब जो समझ में आता है, वो यह है की, कुदरत मुझे ताकतवर बनाना चाहती है, वो चाहती है की मैं खोने का दर्द समझूं, क्योंकी पाने की खुशी और उसका महत्व शायद वही समझता है जो जिंदगी में कुछ खोया हो।
भगवान ने मेरी जिंदगी बनाने में समय तो दिया है, क्यों की दर्द उसी को हो सकता है, जो दर्द का दर्द समझता हो। प्यार उसी को हो सकता है, जो प्यार से प्यार करता हो। और तोड़ने की कोशिश उसके साथ ही होती है, और बार बार होती है, जो टूटता नही है।
इतना लिखते लिखते यह तो समझ आ गया भाई, की जिंदगी इम्तिहान उसी का लेगी, जो उस इम्तिहान को देने में सक्षम हो, और उसी का ही जिससे उसे पास करने की उम्मीद हो।
तो भईया, एक बात तो तय रही की कुदरत को अपने में क़ाबिलियत तो दिख रही है। और एक बार नही बहुत बार दिख रही है, तभी तो बार बार जिंदगी में जहर घोल रही है।
अब सोचना यह है, कि यह विष पी के नीलकंठ बनना है, या सिर्फ अमृत की चाह वाला इंद्र।
जरा सोचिए और हमको भी सोचने में मदद करिए।