मेरा प्रेम और मेरा कबीर

Suyash Upadhyay
3 min readJul 4, 2023

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पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय । ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।।

प्रेम को पढ़ना इतना कठिन क्यों हैं??

प्रेम को पढ़ना इतना कठिन क्यों हैं, कि इंसान इस दुनिया में उपलब्ध सारी किताब पढ़ पाता हैं, चारों वेद पढ़ पा रहा हैं, उपनिषद पढ़ लेता है, लेकिन जब प्रेम पढ़ना होता हैं, तो वो छोटा पड़ जाता है, उसके पास समय कम है, प्रेम को पढ़ने के लिए।

मनुष्य क्यों नहीं सोच पाता, कि प्रेम को पढ़ना ज्यादा अच्छा है, आसान है, उपनिषद और गीता पढ़ने से पहले। हम सब अपने अहम् को पढ़ने में इतने विलीन हो गए हैं कि प्रेम को पढ़ने का समय ही नहीं बच पा रहा है हमारे पास।

इतना खूबसूरत एहसास है ये, कि इसको पढ़ने के बाद कुछ और पढ़ने को शेष नहीं रह जाता, कुछ और पढ़ने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती । प्रेम हमें सिखाता है, कि अहम् कुछ भी नहीं है, प्रेम हमें सिखाता है, किसी नए के साथ एक हो जाने का मतलब। हम दुनिया को सिर्फ उसकी नज़र से देखना चाहते हैं, हम अपनी नज़र खो देते हैं। हर वो काम करना चाहते है जिससे वो ख़ुश हो, जिससे वो मुस्कुरा दे, अचानक से हमारी दुनिया वो बन जाता है। प्रेम ने मनुष्य को वो सब दे दिया है, जो उसको आसानी से ना मिल पाता। लेकिन हम उसी प्रेम को, गणित के सूत्रों में, प्रॉफिट और लॉस के फार्मूला में देखना चाहते है।

ऐसा क्यों ?

प्रेम हमें सिखाता है, खुद को भूल जाना और एक उसको याद रखना, जो शायद कल तक कुछ भी नहीं था, पर आज वो परमात्मा से कम भी नहीं है। प्रेम हमें सिखाता हैं दूसरे के लिए जी जाना। प्रेम हमें सिखाता है अपने आप को भूल जाना। इतना खूबसूरत एहसास, जो हमें खुद से अलग कर देता है। प्रेम हमें एक के करीब आने के लिए, खुद को मिटाने पे मज़बूर कर देता है। प्रेम हमें सिखाता है, एक हो के जीना।।

प्रेम का महत्व जीवन में, गणित से बहुत बड़ा है, लेकिन हम उसको फॉर्मूला में बैठा के बेकार कर रहे हैं। हम उसको तौल के बिगाड़ रहे है।

प्रेम माँ से हो या पिता से, पुत्र से हो, या पुत्री से, या आपकी माशूका से, प्रेम है तो आप हैं, हमें यह समझना होगा, हमें यह समझना होगा कि हम उनसे, या सबसे अलग नहीं है। वो हैं तो हम हैं, हम हैं तो वो है। शायद यही बात उपनिषद भी हमें “तत् त्वम् असि” से बताना चाहते हैं, लेकिन यह अहम् बीच में आ जाता है।

हम भूल जाते हैं, कि जिस दिन वो नहीं रहेगा, उस दिन हम भी नहीं रहेंगे, जिस दिन प्रेम मरेगा, उस दिन हम भी तो मर जाएंगे, लेकिन हम अपनी मौत नहीं देख पाते। हम अपने अहंकार को जीतते हुए तो देख पा रहे हैं, लेकिन हम अपने आप को प्रेम से हारते हुए नहीं देख पा रहे।

क्या हम देख पा रहे हैं?, खुद को मरते हुए प्रेम के बिना।

शायद यही महत्व कबीर हमको समझाना चाह रहे थे, पर मनुष्य कबीर के वो दो लाइन्स कभी समझ ही नही पाया, मनुष्य ने कबीर के उन दोहो को बस एक लिटरेचर समझ के भूल गया, कबीर की इस अमूल्य बात का उपयोग, मनुष्य ने बस कुछ परीक्षाएं पास करने के लिए किया।

काश यह दुनिया प्रेम के मतलब को समझ पाती, तो जीवन कितना आसान होता।

जरा सोचिये, और हमको भी सोचने में मदद करिये।।

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Suyash Upadhyay

Computer Programmer I Amateur Content Writer | Book Reader